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स्वच्छंद

हवा चले इठलाती, इतराती बलखाती,
कभी चले खूब तेज़, कभी बहे मन्द-मन्द,
वह तो रानी है मन की और है स्वच्छंद,
बादल ये मनचले,लगते कितने भले,
कभी दिखें बिखरे हुए,कभी मिलते गले,
भूरे श्वेत रहते कभी कभी होते सांवले,
हर रूप इनका देता है आनंद,
क्योंकि ये भी भाई उड़ते फिरें स्वच्छंद।
सूरज को देखो तो, कभी लगे मन को भला कभी होता प्रचंड,
वसुधा का ऊर्जा स्रोत है बड़ा ही स्वच्छंद,
तारे चांद मन के स्वामी, कभी छिपें कभी दिखें
सारे के सारे हैं बड़े ही न्यारे,
पर एक बात पक्की है हैं ये सभी स्वच्छंद।
बच्चों को ऐसे ही मस्त मस्त रहने दो,
जो चाहे कहने दो, नदियों की मौजों सा उनको भी बहने दो,
रोको मत टोको मत, गुस्से से देखो मत,
लिखने दो पढ़ने दो, स्वेच्छा से बढ़ने दो,
बचपन की नई इबारत, हर दिन गढ़ने दो,
उनका पहला हक़ है ये स्वच्छंद रहने दो,
नदियों की मौजों सा उनको भी बहने दो,
स्वच्छंद है स्वच्छंद रहने दो…

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